Prempuran rachnaye - Dilwali kudi ki kalm se.. - 1 in Hindi Poems by Aziz books and stories PDF | प्रेमपूर्ण रचनाए दिलवाली कुड़ी की कलम से - 1

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प्रेमपूर्ण रचनाए दिलवाली कुड़ी की कलम से - 1

मेरी गुजराती रचनाओं को आप सबने मिलकर बहोत प्यार दिया है और बहोत सराहा है। उम्मीद है कि मेरी हिंदी कवितायें भी आपको पसंद आएगी और आप अपने प्रतिभाव भी जरूर से देंगे।।

तो लीजिये अब प्रस्तुत है प्रेमपूर्ण रचनाए - दिलवाली कुड़ी की कलम से.....

*संसार मे प्रेम को मिली प्रारंभ से अनंत तक की निरंतरता है।*

सच्चा प्रेम अश्को की अग्नि में तप के ही तो निखरता है,
विरह के आने से ही तो वो ओर भी गहरा बन पसरता है।
जिसे मिले सच्चा इश्क़ उसके लिए वरदान बन उभरता है,
संसार मे प्रेम को मिली प्रारंभ से अनंत तक की निरंतरता है।।

ज़िन्दगी में पाना सच्चा प्रेम हर एक प्राणी की तत्परता है,
एक प्रेम ही तो है जीवन मे जो अनचाहे सबका मनोहरता है।
सच्ची महोब्बत की भावना में ही तो बसती अनश्वरता है,
संसार मे प्रेम को मिली प्रारंभ से अनंत तक की निरंतरता है।।

महोब्बत की राहों में भी तो कभी कभी आती विस्वरता है,
यह इश्क़ ही तो जीवन मे सबकी भावनाओं का ध्वजाधरता है।
प्रेम में ही तो मिलती दो दिलो की बातों को समांतरता है,
संसार मे प्रेम को मिली प्रारंभ से अनंत तक की निरंतरता है।।

इन्सान का आजाद मन ही तो प्रेम में पंखी बन फहरता है,
प्रेम का भाव ही तो जगत में देता सबसे बड़ी सुंदरता है।
प्रेम की लगन में ही तो मिलती हर इंसान को अमरता है,
संसार मे प्रेम को मिली प्रारंभ से अनंत तक की निरंतरता है।।

- Dilwali Kudi

* प्रेम संग।*

फूलो से रंगु में तेरा मन प्रेम संग,
फूलो की खुश्बू से महके तेरा अंग।
यह फूलों से खेलने का है प्रेम ढंग,
हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

कीचड़ की होली में खेलु प्रेम संग,
चंदन प्रेम का लगाऊ तेरे अंग।
यह चंदन लगाने का है प्रेम ढंग,
हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

पानी की होली में खेलु प्रेम संग,
पानी सा पाक है तेरा आत्म अंग।
यह पानी मे भिगोने का है प्रेम ढंग,
हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

लठ्ठमार होली में खेलु प्रेम संग,
प्रेम वर्षा कि ये लठ्ठ लगे तेरे अंग।
यह लठ्ठ से सताने का है प्रेम ढंग,
हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

रंगो की होली में खेलु प्रेम संग,
इन रंगो से सतरंगी रंगु तेरा अंग।
तन रंग मे रंगने का है यह प्रेम ढंग,
हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

प्रेम रंग जो चढ़ जाए किसी मन अंग,
उस रूह को न भाये दूजा कोई रंग।
साथ अपने जो लेके चलु प्रेम रंग,
तो हर फागुन की होली में खेलु प्रेम संग।।

- Dilwali Kudi

*यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।*

जीवन के उद्देश्य हुई खुशफहमिया है,
हसीन कुछ यादो की अशर्फियां है।
प्रेम मे मचलती यह जवानियाँ है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

हवाए चुम रही कुछ यूं कलाइयां है,
गर्मियों में जैसे लग रही सर्दियां है।
मानो हमे मिली जन्नत की वादियां है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

आंखों ने आंखों से इशारा ये किया है,
आवाज प्रेम की हमारी कर्णप्रिया है।
कह रही पैरो की यह पायलिया है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

कुछ कह रही हमे पतझड़ की पत्तियां है,
जवाब उन्हें दे रही हमारी चुडिया है।
इस प्रेम से ही तो मिली हमे शक्तियां है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

सांसो में ही घुल रही बेचैनियां है,
अल्फाज़ो मे मिल रही ख़ामोशीया है।
यह सारी तो प्रेम की निशानियां है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

मिलने से जिनके हम हुए सादिया है,
लिखी उनके लिए ही कुछ पंक्तिया है।
मिलने से जिनके हम हुए सादिया है,
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।
यह प्रेम ने ही तो हमे पूर्ण किया है।।

- Dilwali Kudi

*सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।*

सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है,
यह तो प्रेमी को सही राह दिखाना होता है।
अंधेरे मे रोशनी का दिया जलाना होता है,
सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।।

क्रोध अहम राग द्वेष से मुक्त करना होता है,
सच्चे प्रेम मे मोह भय का स्थान नही होता है।
हर परिस्थिति का साथ मे सामना होता है,
सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।।

अश्को की अगन मे साथ जलना होता है,
विरह की तपन को साथ सहना होता है।
आत्मा से इन्हें तो सदा साथ रहना होता है,
सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।।

प्रेमी के आनंद का कर्म सदैव करना होता है,
प्रेमकी स्वतंत्रता का ख्याल पहला होता है।
बंधन ये जिसको लगे प्रेम वहा नही होता है,
सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।।
सच्चा प्रेम प्रेमी का भटकना नही होता है।।

- Dilwali Kudi

*अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।*

अहसास प्रेम का कुछ यू बुलंद हो गया,
लगे जैसे सांसो का चलना बंध हो गया,
अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।

न जाने कैसे ओर कब हो गया,
इश्क़ ये हमे बेवक़्त हो गया,
अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।

तड़पते इस दिल को यू चैन मिल गया,
जैसे तरसती यह धरा को रैन मिल गया,
अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।

ज़िन्दगी मे हर पल खुशनुमा बन गया,
इश्क़ होना हमारे लिए सादिया बन गया,
अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।

रुह को यू सुकून का पल मिल गया,
मानो जैसे खुद खुदा को घर मिल गया,
अहसाह ये हमारा अब निजी हो गया।

- Dilwali Kudi


शुक्रिया आपका पढ़ने के लिए कृपया अपना प्रतिभाव देना मत भूलियेगा।।

पढ़ना जारी रखे अगले भाग में.....